Friday, May 4, 2012

विदेश घूमेंगे विधायक



सुरेन्द्र शर्मा की चार लाइना हैं, ‘सत्ता राम की हो या रावण की जनता तो सीता है, उसका अपहरण या वनवास होता है.’ सच पूछिए तो भारतीय लोकतंत्र का यह परम सत्य है. विधायक शिवसेना- भाजपा का हो या कांग्रेस- राकांपा का. सरकार भी चाहे जिस दल की हो, जनता के पैसे से ये लोग मौज ही मनाएँगे. इनपर न कोई कानून आयत होता है न कोई कायदा. ये सबसे ऊपर हैं. ये सबको नचाते हैं. यानि तुलसी के शब्दों में ये भगवान राम हैं, क्योंकि उनहोंने लिखा है, ‘सबहू नचावत राम गोसाईं.’ जब ये सबको नचा रहे हैं, तो ये आज के या कलयुग के राम ही हुए न!
महाराष्ट्र में जब शिवसेना- भाजपा सरकार थी, तब मुख्यमंत्री मनोहर जोशी सर ने विधायकों की विदेश यात्रा का बंदोबस्त किया था. तब विधायकों को विदेश भेजने का कोई न कोई बहाना ढूंढ ही लिया जाता था. सर भी क्या करते, आजकल के चेले सर के पैर छूने की बजाय सर के पैर छूने का बहाना कर पैर खींचने में ज्यादा यकीन रखते हैं. ऐसे चेलों को सम्भालने के लिए हमारी परम्परा में तो कोई तरीका नहीं है, हाँ पाश्चात्य सभ्यता में जरूर इसके लिए तरीका सुझाया गया है. और वह तरीका है चेलों को रिश्वत देकर चुप कराने का, सो सर ने वही किया. अब उनको भी क्यों दोष दें. वे खुद भी बातें चाहे भारतीय संस्कृति की करें लेकिन पालन पोषण तो उनका पश्चिमी संस्कृति में ही हुआ है. सो उन्होंने यही गुर आजमाया और गुरु बन गए. सच तो यह है कि हमारे घरों में भी बच्चों को इसी तरह लालीपॉप देकर बहलाया जाता है.
खैर विदेश यात्रा की बात करें, तो एक बार शेर के मुंह को खून लग जाए तो छूटता नहीं. कहा भी गया है छूटती नहीं है काफ़िर मुंह को लगी हुई. तो इन विधायकों को भी हरामखोरी मुंह को लग गई है. मनोहर जोशी के जाने के बाद इनका विदेश दौरा बंद हो गया था. लेकिन अब फिर शुरू हो रहा है. क्योंकि नए आए मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख की हालत भी काफी कुछ मनोहर जोशी सरकार की तरह हो रही है. यूँ भी उनका नाम ही विलास है तो सरकार में विलास ही तो होगा. लिहाजा अब विदेशी दौरों की बाढ़ सी आ रही है. अब तरह तरह के बहानों से ये दौरे आयोजित किए जाएँगे. जैसे इस बार अभ्यास के नाम पर दौरा आयोजित किया गया है. जल्द ही कबड्डी के विकास के लिए कोई दौरा हो जाए तो चौंकिएगा मत. ये न सोचिएगा कि जब भारत के अलावा कहीं कबड्डी खेली ही नहीं जाती तो विदेश दौरा कैसे. लेकिन हमारे नेता कुछ भी कर सकते हैं. वे चाहें तो रेत से तेल निकाल सकते हैं, फिर यहाँ तो सिर्फ जनता के सूखे शरीरों से खून ही निकालना है! वैसे भी जनता शरीर में खून जमा कर क्या करेगी? रखे रखे कोई भी चीज सड़ जाती है. इससे तो अच्छा विधायकों के काम आ जाए. धर्मशास्त्रों में भी कहा गया है, यह शरीर किसी के काम आ जाए. फिर हमारी जनता तो धर्मप्राण है. ये विधायक इनके प्राण ही निकालेंगे. धर्म को छोड़ देंगे. वैसे भी धर्म विधायकों के किस काम का!